कहा जाता है, “बेहतरीन प्रतिक्रिया, प्रगति की राह की कुंजी होती है” | इस प्रतिक्रिया के माध्यम से ही सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है | हम सब जानते हैं कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता | प्रत्येक इंसान में कुछ न कुछ कमियाँ होती हैं और हमेशा सुधार की गुंजाइश भी होती है। किन्तु, उसे यदि कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो उसकी कमियों को तो इंगित करे ही साथ ही साथ सुधार के यथासंभव उपाय भी बताए तो यह उस इंसान के लिए सबसे अच्छा उपहार साबित हो सकता है | वास्तव में, जीवन के हर क्षेत्र में सुधार के लिए, विकास के लिए, एक ऐसे मार्गदर्शक की महत्ता होती है जो यथोचित फीडबैक दे सके | हम सभी मशहूर चित्रकार की कहानी से भलीभांति परिचित है जिसमें वह अपने द्वारा बनाई गई कृति को चौराहे पर रखता है और उसके नीचे लिखता है कि “जिसे भी इस चित्र में कहीं कोई कमी नज़र आए वह उस जगह एक निशान लगा दे”| शाम को जब वह उस चित्र को देखता है तो उस पर सैकड़ों निशान दिखते हैं | ये देखकर वह बहुत निराश होता है | कुछ दिन बाद, वह अपने मित्र की सलाह मान कर हूबहू बना दूसरा चित्र चौराहे पर रखता है और लिखता है कि “जिस किसी को भी इस चित्र में कहीं भी कोई कमी दिखाई दे उसे सही कर दे” | और उस दिन शाम तक वह चित्र वैसा का वैसा ही मिलता है | इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि सच्ची प्रतिक्रिया पाना दुर्लभ तो है परन्तु अगर कोई सच्चा विश्लेषक मिल जाए तो हमारा विकास निश्चित है |
फीडबैक का अर्थ होता है – दूसरों के द्वारा स्वयं का आंकलन और ईमानदार प्रतिपुष्टि जो हमारे लिए अनमोल साबित हो सकती है | शिक्षा जगत में फीडबैक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है | यह वह तरीका है जिसके द्वारा हम अपने दृष्टिकोण और यथावश्यक सुधार सम्बंधित बातों को विद्यार्थियों तक पहुँचा सकते हैं। यदि शिक्षार्थियों को सही समय पर उनकी त्रुटियों से अवगत न कराया जाए तो वे अपनी गलतियाँ बार-बार दोहराएंगे और सुधार की संभावना न के बराबर हो जाएगी | पाठ्यक्रम तो पूरा होगा किन्तु अधिगम कितना हुआ, उसके बारे में अनिश्चितता बनी रहेगी | इसलिए समय-समय पर उचित प्रतिक्रिया व्यक्त करना ज़रूरी होता है | ये प्रतिक्रिया किसी भी रूप में हो सकती है- लिखित, मौखिक, व्यक्तिगत रूप से बात करके, समूह में अप्रत्यक्ष रूप से, इत्यादि |
उचित फीडबैक देने के लिए सबसे पहले आवश्यक है अपने विद्यार्थियों से अच्छी तरह से जुड़ना | शिक्षक और छात्र के मध्य विश्वासपूर्ण आबंधन होना अति आवश्यक है क्योंकि इस कनेक्शन के माध्यम से ही एक शिक्षक न केवल शैक्षिक रूप से बल्कि मानसिक एवं भावनात्मक रूप से भी अपने छात्रों से जुड़ता है | आज के युग के बच्चे बहुत भावुक और संवेदनशील होते हैं और किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया को वे किस रूप में ले रहे ये समझना बहुत मुश्किल होता है।
फीडबैक मिलना उन्हें प्रोत्साहित भी कर सकता है और हतोत्साहित भी | इसलिए एक शिक्षक को शिक्षण के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों की संवेदनाओं से जुड़ने की भी अनिवार्यता होती है | फीडबैक देने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है – वह सकारात्मक हो, सहायक हो, और उसके माध्यम से सुधार की संभावना हो |
फीडबैक की प्रक्रिया द्वीगामी युक्ति है | ये न केवल विद्यार्थियों में सुधार के लिए आवश्यक होती है बल्कि शिक्षक को भी अपने पढ़ाने के तरीके को और बेहतरीन करने में सहायक साबित होती है | किसी भी विषय को, चीज़ को, स्थिति को विद्यार्थियों के नज़रिए से देखने पर पढ़ाना ज़्यादा दिलचस्प और मज़ेदार हो जाता है। विद्यार्थियों के दृष्टिकोणों को हम अलग-अलग तरीकों से समझ सकते हैं। विद्यार्थियों के चेहरों पर उभरने वाले भाव, उनके द्वारा पूछे जाने वाले सवाल और उनका लिखित कार्य – ये सभी विद्यार्थियों से मिलने वाले फीडबैक के ही प्रकार हैं। इनके आधार पर ही शिक्षक अपने पढ़ाने के तरीके में यथोचित संशोधन कर सकते हैं |
इस प्रकार शिक्षा प्रणाली में पढ़ाने के साथ ही साथ फीडबैक का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है | कहा भी जाता है कि “सीखने और सिखाने में अनंत शिक्षण से अधिक अनंत प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत होती है” | बस हमें इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है कि फीडबैक न केवल सकारात्मक हो, न ही नकारात्मक हो बल्कि रचनात्मक हो |
Ms. Neha Singh Gour
Hindi Teacher, Secondary (CAIE)
The journey of teaching started with my kids, and now it is a vital part of my life. I have been with CHIREC for the past five years. I am not only a teacher; I am a learner too. Teaching requires implementing creative ideas and pushes us to dig deep to learn new things. I enjoy this part a lot. Mine is a lively occupation. Though earlier, I had never thought of becoming a teacher, now I enjoy my profession. I proudly say that “I am a Teacher.”